मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर ओरछा का रामराजा मंदिर एक अद्वितीय धरोहर है, जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर न केवल स्थापत्य कला का चमत्कार है, बल्कि इसके साथ जुड़ी कथाएं, भक्तों की असीम श्रद्धा और भगवान की लीला की कहानियां भी लोगों को आकर्षित करती हैं। इनमें से एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा है, जब भगवान राम ने एक संत के लिए अपनी अंगूठी गिरवी रखकर उसे भोजन कराया। यह कथा भगवान की असीम करुणा और उनके भक्तों के प्रति उनके समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।
कथा का प्रारंभ:
कहते हैं कि ओरछा के रामराजा मंदिर में गब्बू नामक एक अत्यंत श्रद्धालु पुजारी भगवान राम की नित्य सेवा में रत रहते थे। एक दिन, नेपाल के जनकपुर से एक महान संत ओरछा के रामराजा मंदिर में दर्शन हेतु पधारे। संत के आगमन से मंदिर का वातावरण पावन हो गया, लेकिन उस दिन दुर्भाग्यवश, गब्बू पुजारी ने संत के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं की। जिससे संत नाराज हो गए और उन्होंने कठोर संकल्प ले लिया कि जब तक भगवान राम स्वयं आकर उन्हें भोजन नहीं कराएंगे, तब तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।
भक्ति की शक्ति और भगवान का प्रकट होना:
संत ने दिन-रात भूखे पेट मंदिर के प्रांगण में भगवान राम का नाम जपते हुए इंतजार करना शुरू कर दिया। उनकी भक्ति की आंधी इतनी प्रबल थी कि स्वयं भगवान राम भी उसकी तीव्रता के आगे झुक गए। आधी रात को, भगवान राम ने एक बालक के रूप में प्रकट होकर एक हलवाई की दुकान पर दस्तक दी। हलवाई हड़बड़ाकर उठा और उसने उस बालक से आने का कारण पूछा। बालक (जो स्वयं भगवान राम थे) ने अपनी अंगूठी दिखाते हुए कहा, “यह अंगूठी गिरवी रख लो और संत के लिए भोजन तैयार कर दो।”
हलवाई ने बालक के भोले चेहरे और उसकी कातर दृष्टि देखकर उसकी बात मान ली और संत के लिए गरमा-गरम भोजन तैयार किया। संत को भरपेट भोजन कराकर, भगवान राम ने अपनी भक्ति का कर्ज चुकाया और एक अद्वितीय लीला का साक्षात कराया।
सुबह की घटना और मंदिर में हड़कंप:
सुबह, जब पुजारी गब्बू ने भगवान की आरती के लिए मंदिर के कपाट खोले, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। भगवान राम की अंगुली से उनकी प्रिय अंगूठी गायब थी। यह देखकर मंदिर में हलचल मच गई। तभी, हलवाई दरबार में उपस्थित हुआ और उसने बीती रात की पूरी घटना सुनाई—कैसे एक बालक ने उसकी दुकान पर आकर अंगूठी गिरवी रखकर संत के लिए भोजन का अनुरोध किया था।
पुजारी की पश्चाताप और नयी परंपरा का प्रारंभ:
हलवाई की बात सुनकर गब्बू पुजारी के नेत्रों में आंसू आ गए। उन्हें अपनी गलती का गहरा एहसास हुआ और उन्होंने भगवान राम से सच्चे हृदय से क्षमा मांगी। उस दिन के बाद से, रामराजा मंदिर के सामने प्रतिदिन संतों और श्रद्धालुओं के लिए भोजन वितरण की एक अनूठी परंपरा का शुभारंभ हुआ, जो आज भी अनवरत जारी है। यह परंपरा भगवान की करुणा और उनके भक्तों के प्रति उनके असीम प्रेम की स्मृति के रूप में जीवित है।
निष्कर्ष:
ओरछा के रामराजा मंदिर की यह अद्भुत कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति के आगे स्वयं भगवान भी झुक जाते हैं। नेपाल से आए संत की तपस्या और भगवान राम की करुणा का यह प्रसंग हमारी संस्कृति में ईश्वर और भक्त के बीच के उस अनमोल संबंध को दर्शाता है, जो केवल विश्वास, प्रेम और समर्पण पर आधारित है। आज भी इस मंदिर में हजारों भक्त आते हैं और इस चमत्कारिक घटना की स्मृति में होने वाले भोजन वितरण में भाग लेकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।
यह कथा हमें याद दिलाती है कि जब भक्त सच्चे हृदय से भगवान की पुकार करते हैं, तो वे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपने भक्तों की मदद के लिए स्वर्ग से धरती पर उतर आते हैं। भगवान की यह करुणा और भक्तों का यह विश्वास ही इस मंदिर को एक अनूठा और पवित्र तीर्थ स्थल बनाता है।